...

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पीछे मुड़ कर...
पीछे मुड़ कर देख रही हूँ
अपने खुशनुमा चेहरे को
जाने कहाँ गए हँसते हुए वो लम्हे
जो छू गए हैं आज दिल को।।

न वो मुस्कान है, न है वो खुशी
न कोई आशा है, न तमन्ना जीने की
आँसू आज दर्द बनकर उभर रहे हैं
शायद दिल-ओ-दिमाग को संभाल रहे हैं
अक्सर घिरी रहती हूं सबसे
इसलिए ये दर्द नही झलकता है
लेकिन अंधेरी रातों में ये
आंसू बनकर छलकता है।।

काश बदल पाती आज को उस वक़्त में
लेकिन कमबख्त ये ज़िन्दगी भी तो सख्त है
न वापस जा सकती हूं, न आगे जाने का मन है
खुद अपने ही हाथों बर्बाद होने का गम है।।

अब आगे का रास्ता धुंधला नज़र पड़ता है
जो गलतियाँ की थी उन्ही का असर लगता है
खैर, सब भूलकर चलना तो पड़ेगा आगे...
क्योकि ये वक़्त किसी के लिए नही रुकता है!!
© #feelings@1883