कविताओं के महल में
फ़रिश्ते की तरह उतरा जब
तेरी कविताओं के महल में
हमने देखा वो नजारा
एक खामोशी सी पसरी दिखती थी हर कहीं
पर महफ़िल में शुमार हर शख़्स
गुनगुनाता कह रहा था कुछ न कुछ
और नज़रों में दाद ढूंढता था
उतर आओ ओ सरताज
हमारे जहन के निशानों पर
कह दो दो शब्द वाह वाही से भरे...
तेरी कविताओं के महल में
हमने देखा वो नजारा
एक खामोशी सी पसरी दिखती थी हर कहीं
पर महफ़िल में शुमार हर शख़्स
गुनगुनाता कह रहा था कुछ न कुछ
और नज़रों में दाद ढूंढता था
उतर आओ ओ सरताज
हमारे जहन के निशानों पर
कह दो दो शब्द वाह वाही से भरे...