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!...हवस या रोमांस या रंगरलियां...!
कौन कहता है मुझेै कि मैं बहुत अच्छा हूं
चेहरे पे चेहरा लिए मैं तो यहां फिरता हू

तन आदम, मन इबलीस लिए फिरता हूं
लोग समझते है, मैं इश्क लिए फिरता हूं

चाक पीरहन कर, नशे में है इब्न ए हव्वा
मैं हर लम्हा एक जंजीर लिए फिरता हूं

बज़्म-ओ-बाजार में बिकते है ये तो बदन
जैब में अपने रकम मैं भी लिए फिरता हू

बाज औकात ये न पूछ कि ये कैसे हुआ
मैं भी इश्क़ में एक जिस्म लिए फिरता हूं

उनकी अदा में छुपे होते है फितने सारे
ऐसे फितनो से मैं, गुल कैद किए फिरता हूं

_–12114