...

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महकती फिजायें
तुम्हें पाने की हसरत को मिटा हरगिज़ नहीं सकते
तुम्हें हम कितना चाहते हैं...ये जता भी नहीं सकते

महकती फ़िज़ाएँ अब भी हैं....तुम्हारा नाम लेते ही
बहारें जब-जब आती हैं......ये गुलशन मुस्कुराते हैं

गुज़रते हैं कहीं से हम......नज़रें तुमको ही ढूँढती है
तुम्हीं सपनों में आते हो.....तुम्हीं रग-रग में बहते हो

धड़कता दिल है किसके लिए ये बतला भी नहीं सकते
कि अरमां अब भी मचले हैं दबा इनको भी नहीं सकते
© ऊषा 'रिमझिम'