...

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मुसाफ़िर को अपने यूं हताश ना कर....
ए ज़िंदगी तू यूं हताश ना कर
बहुत आस है तुमसे तू यूं निराश ना कर

वक्त से पहले जो मिला वो खो दिया
बेशक वक्त पर दे
मगर छीनने की मुझसे फिर आस ना कर

जो चाहा नहीं, वो मेरे हिस्से दिया है तूने
जो मांग रही हूं तुमसे उसे देने का एहतिमाम कर

बहुत दिए हैं मौसम तुमने धूप के
मेरे हिस्से भी कभी तू छांव कर

ना कर परेशां यूं मुसाफ़िर को अपने
हिस्से में बेफ़िक्री वाली फिर वही बचपन की शाम कर ।
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एहतिमाम:– try
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© feelings
#selfhelp #life #hurdles #goals #us