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जिंदगी - एक विज्ञान
हम हमेशा ढूँढते ही रहे,
इधर -उधर पूछ पूछ कर थक गए।
पर कभी अपने आप से नहीं पूछा,
कि क्यों हम बिना कोई उत्तर की सो गए?
बचपन से ले कर अब तक,
मन में सवाल कम होते रहे।
और ऐसे ही खुदको कहीं खो कर,
अपनी मन कि आवाज को बंद करते रहे।
क्यों की खुद से ऐसी गुनाह,
जब पता थी की क्या गलत है इसमें।
लेकिन फिर भी हम चुप रहे,
लोगों की लेके झूठे कसमें।
क्यों हम चुप बैठ, क्यों हम चुप रहे?
© MSt-Saswati Priyadarshini
इधर -उधर पूछ पूछ कर थक गए।
पर कभी अपने आप से नहीं पूछा,
कि क्यों हम बिना कोई उत्तर की सो गए?
बचपन से ले कर अब तक,
मन में सवाल कम होते रहे।
और ऐसे ही खुदको कहीं खो कर,
अपनी मन कि आवाज को बंद करते रहे।
क्यों की खुद से ऐसी गुनाह,
जब पता थी की क्या गलत है इसमें।
लेकिन फिर भी हम चुप रहे,
लोगों की लेके झूठे कसमें।
क्यों हम चुप बैठ, क्यों हम चुप रहे?
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