...

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तिल तिल कर मर रहीं नारी
समाज़ के बनाए रूढ़ि सोच विचारो एवं नियम,
कानून में बंध कर,तिल तिल कर मर रही है नारी!

कहने को तो जगत जननी,नारी शक्ती, नौ स्वरुप,
पर आज भी अपने अधिकारों से वंचित है नारी!

स्वतंत्र है केवल समाज़ की नज़रो में लेकिन आज
भी क़ैद है जंजीरो में कहीं सहमी सी अबला नारी!

सर्वस्व जीवन अर्पण कर देती परिवार के लिए,
फिर भी सवालों के कटघड़े में खड़ा है नारी!

सब त्याग कर अपने खुशियों सपनों का जीते जी,
तर्पणकर देती,पुरुषकहे मेरेलिए अभिशाप है नारी!

चाहे स्त्री के दामनमें कोईदाग़ ना हो लेकिन समाज़,
की गंदी सोच के आगे देती अग्नि परीक्षा है नारी!

द्रौपद युग हो या कल युग हर युग में पुरुष के दुःखो
को अपना समझ कर उसे तरति है नारी!

कभी बनती रण चंडिका तो कभी बनती महा गौरी,
संसार से तंगआकर करतीरक्तबीज का पान है नारी!

आई जो आँच उसके आबरू पर एक बूँद भी तो,
बिना सहे करती नर संहार अकेले ही है नारी!

सर पे लाख जिम्मेदारियों को लेकर करती सारे काम
उफ़ तक ना करती ये इसकी कोमलता है नारी
© Paswan@girl

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