...

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बूंद
इक बूंद बादल ने बरसाई थी
जो सहज हाथों में आई थी
कहा ,
"ये जीवन हूं मैं ही
तेरा साया हूं मैं ही !"

किंतु, सागर भरा था मुझ में
अहंकार अब झरा था मुझ में
बूंद को डाल दिया सागर में
अब मैं जीवित खारे गागर में


© preet