...

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आज मरने की सोचते हैं।
आज मरने की सोचते हैं,
जिस्म देख कर ये ज़माना अश्क बहाए तो सही,
झूठी मगर बेशक तारीफों के फुल बरसाये तो सही;

क्या पता कब तक आजमाएगी ये ज़ालिम ज़माने की दो पल की ख़ुशी ;
सुना हैं हमनें भी इंतकाल हो तो इज्ज़त बढ़ जाती है।
जनाब इस दिन के लिए जिस्म सम्भाले रखा है हमनें ।
रुखसत हो जाएंगे इस महफ़िल से कहीं ।
कोई हमारा जनाज़ा उठाए तो सही,
अरे!कोई हमें कब्र तक पहुंचाए तो सही।

--------- सुप्रिया तिवारी 🍁

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