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धर्मयुद्ध - महाभारत
द्वापरयुग का वह रण महान,
कुरूक्षेत्र था जिसका युद्ध- स्थान।
दो पक्षों की सेना तमाम,
थे योद्धा सभी सामर्थ्यवान।
दोनो ही पक्ष थे बलशाली,
थे अनुशासित, थे क्षमतावान।
रणनीति अनेक, थे व्यूह कई,
अंततः पांडवों की विजय हुई,
हुआ उनके राज्यों का वितान।
था युद्ध नही वह साधारण,
देता है ज्ञान इसका क्षण-क्षण,
जो चले सत्य, धर्म-पथ पर,
जो रहे प्रजा हेतु हितकर,
जहाँ नीति-न्याय नहीं म्लान हुआ,
उस नृप का सदा उत्थान हुआ।
जिसने अधर्म का लिया पक्ष,
हो जाए सहस्त्र गुणों में दक्ष,
तिस पर भी होगा पराजित,
साक्षी हैं इसके गंधर्व -यक्ष।
उन बलिदानो के माध्यम से,
गीता के ज्ञान उस अनुपम से,
ये धर्मयुद्ध महाभारत का,
धर्मपालन की प्रेरणा देगा।
सदियों तक विश्व ये देखेगा,
धर्म-पथ में दुख संभावित है,
किन्तु, विजय भी निश्चित है!
© metaphor muse twinkle