ग़ज़ल
२२१-१२२२//२२१-१२२२
इस बार मेरे दुश्मन तू कुछ तो नया करना
जब आग लगे घर में दामन से हवा करना (१)
इस तरह नहीं हमको देखेंगे ज़हाँ वाले
बाग़ीचे में ख़्वाबों के तुम हमसे मिला करना (२)
कुछ पल के लिए तुमको आकाश दिला दें जो
अहसान तले उनके दिन-रात दबा करना (३)
गर जान बचानी हो मत जाना कभी बाहर
फिर आए अगर कोविड घर में ही रहा करना (४)
अब आ ही नहीं सकती मुश्किल कभी रस्ते में
मंज़िल की तरफ़ यारो...
इस बार मेरे दुश्मन तू कुछ तो नया करना
जब आग लगे घर में दामन से हवा करना (१)
इस तरह नहीं हमको देखेंगे ज़हाँ वाले
बाग़ीचे में ख़्वाबों के तुम हमसे मिला करना (२)
कुछ पल के लिए तुमको आकाश दिला दें जो
अहसान तले उनके दिन-रात दबा करना (३)
गर जान बचानी हो मत जाना कभी बाहर
फिर आए अगर कोविड घर में ही रहा करना (४)
अब आ ही नहीं सकती मुश्किल कभी रस्ते में
मंज़िल की तरफ़ यारो...