umeed
बैठे हैं राह में शायद वो मकाम आ जाये।
जो रूठे हैं हमसे उनका सलाम आ जाये।
उम्मीदों की खिड़कियां कभी बन्द न हो।
क्या पता कब रोशनदान से चाँद आ जाये।
इंतजार उसका होगा सुपुर्दे खाक होने तक।
किस घड़ी ना जाने उसका पैगाम आ जाये।
तड़प कैसी दर्द कैसा और चुभन कैसी।
इश्कवालों को तो यादों से ही आराम आ जाये।
,©️®️ranjitsingh
© ranjitsingh
जो रूठे हैं हमसे उनका सलाम आ जाये।
उम्मीदों की खिड़कियां कभी बन्द न हो।
क्या पता कब रोशनदान से चाँद आ जाये।
इंतजार उसका होगा सुपुर्दे खाक होने तक।
किस घड़ी ना जाने उसका पैगाम आ जाये।
तड़प कैसी दर्द कैसा और चुभन कैसी।
इश्कवालों को तो यादों से ही आराम आ जाये।
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