...

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होली (एक विरह की)
फूटे करम अबीर के अभागा गुलाल हुआ है आज
जिसपर लगना था प्रेमरंग वो गाल हुआ ओझल सा आज
गैरों से बनते है रिश्ते अपने होते बैर यहाँ पर
होली पर ये मतभेद हुआ रंगो ने चुना है गाल आज

चुनरी रंगना चाहा मैने रंगना चाहा था तन सारा
रंगो का चुनाव करते करते गैरों का हुआ है लाल हाथ
होली के इस दिन पर मेने अनेक स्वप्न सिजोए थे
सपने टूटे सारे मेरे दिल का खून किया है उसने आज
© _Ankaj Rajbhar 🥺

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