...

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तुम सोचते हो.....
तुम सोचते हो की मैं दगाबाज हूँ,
पर छुपाए बैठा सीने में मै एक राज़ हूँ ,
ये तुम्हें मालूम नहीं।

तुम सोचते हो की मैंने साथ ना निभाया,
पर तुम्हारी यादों में तो मैंने खुदको भी भुलाया ,
ये तुम्हे मालूम नहीं।

तुम सोचते हो की मेरा हर वादा झूठा था,
पर तुम्हारी खातिर मैं तुमसे रूठा था,
ये तुम्हें मालूम नहीं।

तुम सोचते हो की मेरी सब कसमें कच्ची थी,
पर हर कसम दुनिया की किसी भी चीज से ज्यादा सच्ची थी ,
ये तुम्हें मालूम नहीं।

तुम सोचते हो की मुझे प्यार निभाना ना आया,
पर हर हाल में मैंने प्यार निभाया है ,
ये तुम्हें मालूम नहीं।

तुम सोचते हो की मैंने तुम्हें नहीं अपनाया,
पर तुम्हारी ख़ुशी के लिए था तुम्हें ठुकराया,
ये तुम्हें मालूम नहीं।

तुम सोचते हो की हम जिंदगी का लुत्फ़ उठा रहे हैं,
पर आज भी तुम्हारी यादों के सहारे पल गुजारे जा रहे हैं ये तुम्हें मालूम नहीं।"

From my story "दो अनजान हमराही"

© Prahelika