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इश्क़
दिल लगा बैठे ख़ुदाया, अजनबी मेहमान से,
आते हैं ख़्वाब-ए-मुहब्बत अब मुझे ईमान से।

गोया इत्र-ए-इश्क़ से महका है दिल का आशियाँ,
बा-यकीं आईं हैं ख़ुशियाँ मेरे दर, रिज़वान से।

मेरे सज़दे में क़सीदे में तेरा ही नाम है,
इक तुझे माँगा किया मैंने सनम रमज़ान से।

मेरे मोहसिन, इश्क़ को तूने किया है जब क़ुबूल,
हसरतें जी उट्ठी हैं मेरी, तेरे एहसान से।

मुंतज़िर था दिल मेरा तेरी निगाह-ए-इश्क़ का,
बाख़ुदा हासिल हुआ तू आख़िरी मुस्कान से।
© Azaad khayaal

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