#घड़ीकेविचार
#घड़ीकेविचार
आज पल पल कैसे बीत रहा है
अतीत में कोई इसे खींच रहा है
जा रहा है स्वर्णिम समय भी ऐसे
व्यर्थ की चिंता में गँवाया हो जैसे
साँझ की थकी थकी मद्धम हवा
इक नयी भोर की आशा में है रवाँ
समय बीत गया जो वो कल हुआ
आने वाला कल पर है अनछुआ
क्यूँ कुछ छूट जाने की निराशा है
आगे बहुत कुछ आने की आशा है
मन स्थिर नहीं तो भटकता रहेगा
वक़्त के पहियों संग घूमता रहेगा
कल आज और कल की दौड़ में
ख़ुद ही ये ख़ुद को ढूँढता रहेगा
NOOR EY ISHAL
© All Rights Reserved
आज पल पल कैसे बीत रहा है
अतीत में कोई इसे खींच रहा है
जा रहा है स्वर्णिम समय भी ऐसे
व्यर्थ की चिंता में गँवाया हो जैसे
साँझ की थकी थकी मद्धम हवा
इक नयी भोर की आशा में है रवाँ
समय बीत गया जो वो कल हुआ
आने वाला कल पर है अनछुआ
क्यूँ कुछ छूट जाने की निराशा है
आगे बहुत कुछ आने की आशा है
मन स्थिर नहीं तो भटकता रहेगा
वक़्त के पहियों संग घूमता रहेगा
कल आज और कल की दौड़ में
ख़ुद ही ये ख़ुद को ढूँढता रहेगा
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