...

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हम रूह पर इत्र लगाते कहांँ हैं ?
मयखाने जाम छलकाते कहांँ हैं ?
लरज़ीदा हाथों में आते कहांँ हैं ?

धूप खिली नही मुद्दतों से यहाँ
सब गीले गम सुखाते कहांँ हैं ?

ये नया घर बुजुर्गों का कहांँ है ?
ज़मी से उठ कर जाते कहांं हैं ?

झुलसे खुद नफरत की आग में
ये जलने वाले जलाते कहांँ हैं ?

ओढ़ के सारे बदन पर खुशबू
काब ये चरित्र छुपाते कहांँ हैं ?

नज़र ने महसूस की इरादों में बदबू
हम रूह पर इत्र लगाते कहांँ हैं ?
© manish (मंज़र)