...

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ना जाने जिंदगी...
ना जाने जिंदगी किस मोड़ पर आ कर थम सी गई है
जहां से ना आगे का राह दिख रहा ना ही कोई मंजिल
सफर भी अब मुश्किलों का टोकरा बन गया है ।

ना जाने किस भेड़ चाल में हैं हम अब
बचपन में बड़े होने की जल्दी थी और
बड़े होने पे बचपन को यादों में सजाकर तरसते हैं।

न जाने कैसे कैसे रिश्ते बना रखे हैं नाम के हम
जिसको साथ लेकर ना आगे बढा जा सकता है
ना ही पीछे छोड़ कर अकेले राहगीर बनके आगे चल पाओ।

ना जाने क्यों लगता था मैं गलत थी
औरों के परेशानी का वजह थी मैं
पर मुझे क्या पता था में बेवकूफ थी ।

ना जाने अब किसपे भरोसा करें और कैसे
सब ने कुछ इस तरह तोड़ा की ज़ख्म तो है गहरा
पर ज़ख्म को देखने और मरहम लगाने वाला कोइ नहीं ।

ना जानें जिंदगी अब किस ओर चल रही है
क्यों चल रही है उन लोगों के साथ जिनके लिए मेरा कोई वजूद भी नहीं
कुछ अंदाजा भी अब नहीं इस जिन्दगी का ।

© Disha