...

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"संघर्ष"
भाग्य क्या होता है मैं जानती नहीं;
मैंने तो अपने जीवन का हर पन्ना संघर्ष की स्याही से है लिखा।

उजालों की महफिल को मैंने कभी देखा नहीं;
मैंने तो अंधेरों में एक नन्हीं सी किरण को है देखा।

मैंने राहें सुन्दर सी देखी ही नहीं;
मैंने तो कटीली राहों पर चलना है सीखा।

तोडना तो वक्त ने चाह मुझे बेतहां;
लेकिन साहब मुझे जिद्द थी वक्त से जीतने की सो मैंने हजारों दर्द सहकर खुद को कभी टूटनें नहीं दिया;...और...
वक्त को कभी जीतने नहीं दिया।

हां! मैंने जिया है अपनी जिन्दगी के कुछ लम्हों को एक युग के जैसे;
लेकिन उन लम्हों में भी मैंने संघर्ष का हाथ छूटने नहीं दिया।

© PARUL DUBEY KI LEKHNI SE ✍️