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बेटियां जिन्दा लाश की तरह।पूरा जरुर पढ़ें ☝️☝️
दासता कुछ इस तरह हैं कि बेटियाँ जिन्दा लाश की तरह है।
जीती जागती मूरत ऐसा कि
कोई भी अपना दाव चल दे
वैसे पत्ते ताश की तरह है।
लोग समझते हैं कि बेटी का बोझ कूछ इस तरह है कि
कमाओ खाओ और बचत भी नहीं
उम्र बढ़ती जरूरते बढ़ रही
चैन से बैठने तक राहत नहीं।

मैं पूछती हूँ क्यों गलत है सोच लोगों की
बेटे के इन्तजार में क्यों बेटी को जन्म देते है?
future बिना सोचे present खुद क्यों बिगारते है?
सोचते नहीं कि जन्म जब ली है बेटी तो
फिर क्यों खुल के जीने का अधिकार नहीं देते है?
क्यो बड़े होने पर पाबंदियां लगाते है?
घर से बाहर कदम रखने पर भी
बाप के इज़त पे सवाल उठने लगते हैं।
क्या गलती हमेशा बेटी की होती हैं या फिर समाज की?
आज कुछ घरों में बेटी की कहानी ऐसे हो गई है कि
वो चाहती है उड़ना पर पंख टूट चुके है।
दिल में बचा है कुछ हौसला वो भी रूठ चुके है।
जज्बा हैं कूछ कर दिखाने की
उसपर भी ताले लगाये जा चुके है।
सवाल मेर कोई बड़ा नहीं है

जब बेटी पालना नहीं आता तो जन्म देते क्यों हो?

जन्म देते हो तो खुशी से पालते क्यों नहीं हो?

क्यों बोझ समझके उतारना चाहते हो?

किसी अंजान घर में अपने घर के रौशनी देकर
क्यो खुद को आजाद मानते हो?

बेटी कोई खिलौना नहीं जो यहाँ वहाँ देदो
दहेज देके क्यों अपना ईमान बेचते हो???????🤔🤔🤔


save daughters save India ☝️


#self made poem #
@purnima

© ~♡Purnima♤