...

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मिटता अक्स
देखे थे जहाँ हमारे वस्ल के फुल खिलते
देखता हुँ वहीं से गुबार आँहो के उठते !

जहाँ महकती थी कभी जिंदगी खुशीमे
मैने देखा है वहाँ आँसुओं को सिसकते !

वो आसमाँ भी खो गया है ना जाने कहा
दुआ करे कैसे अब सितारे भी नही टुटते !

धडकने भी दस्तके दे रही है धिमे से
देख रहा हुँ नब़्ज और साँसो को रुकते !

दुर जाती हुई रुहानी यादों को सिमटते
और एक अक्स को भी वजुद से मिटते !
© संदीप देशमुख