...

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चाहत

इन जंजीरों को तोड़कर
रुख हवा का मोड़कर
चल रहे हैं देखो हम

अपनी धून में बहते हुए,
सबको दरकिनार करते हुए,
बह रहें हैं देखो हम,

चाह बड़ी ज़ालिम सी,
कतार में कटार लगी,
ढह रहें हैं देखो हम,

तुम पिरो दो हमें,
या हमें पिरोने दो खुद ही,
चाह रहें हैं देखो हम,

क्या सार क्या संसार,
नज़रिए पर नज़र टिकी,

इस तरह जुड़ना चाहें देखो हम,
इस तरह उड़ना चाहें देखो हम।
© लहर✍🏻