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जिंदगी
जिंदगी में ना साथी है ना सहेली
फिर भी भीड़ की तन्हाइयों में गुम हो गई है पहचान ।
ना ख्वाब है ना अरमान
फिर भी रहती है टूटे हुए मकान ।
ना प्यार है ना तकरार
फिर भी पड़ी हुई है बेबस जिंदगी थकान ।
ना खुशी है ना गम
फिर भी ढही हुई है बाढ़ में दुकान ।
ना आशु है ना हंसी
फिर भी मनुष्य हो गया है बेजान।
ना छांव है ना धूप
फिर भी लोग लग रहे है अनजान।
© All Rights Reserved
फिर भी भीड़ की तन्हाइयों में गुम हो गई है पहचान ।
ना ख्वाब है ना अरमान
फिर भी रहती है टूटे हुए मकान ।
ना प्यार है ना तकरार
फिर भी पड़ी हुई है बेबस जिंदगी थकान ।
ना खुशी है ना गम
फिर भी ढही हुई है बाढ़ में दुकान ।
ना आशु है ना हंसी
फिर भी मनुष्य हो गया है बेजान।
ना छांव है ना धूप
फिर भी लोग लग रहे है अनजान।
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