...

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जिंदगी
जिंदगी में ना साथी है ना सहेली
फिर भी भीड़ की तन्हाइयों में गुम हो गई है पहचान ।

ना ख्वाब है ना अरमान
फिर भी रहती है टूटे हुए मकान ।

ना प्यार है ना तकरार
फिर भी पड़ी हुई है बेबस जिंदगी थकान ।

ना खुशी है ना गम
फिर भी ढही हुई है बाढ़ में दुकान ।

ना आशु है ना हंसी
फिर भी मनुष्य हो गया है बेजान।

ना छांव है ना धूप
फिर भी लोग लग रहे है अनजान।

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