ये कहाँ आ गए हम
सारी सुविधाएँ मिल गयी हैँ,
फिर भी मन एकाकी है,
कितना कुछ पा लिया,
फिर भी लगता सब बाकी है,
कलाई पर महंगी घड़ी है
मगर वक़्त देने को है ही नहीं,
घर में सदस्यों की संख्या कम नहीं,
फिर भी आँगन खाली है,
ac, laptop, mobile,से घर भरे,और,
सबको अपने अपने कमरे मिले,
रिक्तितता सबंधो में बढ़ गयी,
और सबका मन एकाकी है!
फिर भी मन एकाकी है,
कितना कुछ पा लिया,
फिर भी लगता सब बाकी है,
कलाई पर महंगी घड़ी है
मगर वक़्त देने को है ही नहीं,
घर में सदस्यों की संख्या कम नहीं,
फिर भी आँगन खाली है,
ac, laptop, mobile,से घर भरे,और,
सबको अपने अपने कमरे मिले,
रिक्तितता सबंधो में बढ़ गयी,
और सबका मन एकाकी है!