...

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कभी कभी ज़िंदगी में
कभी कभी ज़िंदगी में होती
महसूस मुझ को तेरी कमी

बिस्तर पड़ी हुई सिलवटें बहुत
आंखों में देखो छुपाई हमने नमी

तन्हा गुज़र रही रुकी हुई जिंदगी
ग़म की धूप कभी छांव की खुशी

शहर भी अंजाना लोग भी बेगाने
कैसे दूर करें हम ख़ुद से तेरी कमी

कश्मकश है चल रही दिल में बहुत
ले लो बाहों में कर दो हर रात शबनमी
© Hina