कभी कभी ज़िंदगी में
कभी कभी ज़िंदगी में होती
महसूस मुझ को तेरी कमी
बिस्तर पड़ी हुई सिलवटें बहुत
आंखों में देखो छुपाई हमने नमी
तन्हा गुज़र रही रुकी हुई जिंदगी
ग़म की धूप कभी छांव की खुशी
शहर भी अंजाना लोग भी बेगाने
कैसे दूर करें हम ख़ुद से तेरी कमी
कश्मकश है चल रही दिल में बहुत
ले लो बाहों में कर दो हर रात शबनमी
© Hina
महसूस मुझ को तेरी कमी
बिस्तर पड़ी हुई सिलवटें बहुत
आंखों में देखो छुपाई हमने नमी
तन्हा गुज़र रही रुकी हुई जिंदगी
ग़म की धूप कभी छांव की खुशी
शहर भी अंजाना लोग भी बेगाने
कैसे दूर करें हम ख़ुद से तेरी कमी
कश्मकश है चल रही दिल में बहुत
ले लो बाहों में कर दो हर रात शबनमी
© Hina