...

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सुरूर से सच्चाई तक
वो कैसा सुरूर होता है,
जो उतर जाता है सर से,
वो वक्त भी मगरुर होता है,
जो गुज़र जाता है शहर से।

सोचता था मुकम्मल हुआ हूं मैं,
किसी की कुर्ब में आ कर,
पर अब आधा भी ना बचा हूं मैं,...