...

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गिरफ्तार हुए बैठे है
ताज्जुब तो यह है कि बिना जुर्म के गिरफ़्तार हुए बैठे है,
अपने ही घरों में लोग कैद सरेआम हुए बैठे है।
इन खाली-खाली वक़्तों में परिवार के साथ रहना,
अच्छा लगता है, आज अपनी नहीं दूसरों के मन की करना।
वरना फुर्सत कहाँ थी अपनों के बीच रहने की,
ताज्जुब तो यह है कि बिना जुर्म के गिरफ्तार हुए बैठे है।
जरूर ये कोई कुदरत का करिश्मा होगा,
खुदा की सोची समझी साजिश में आजाद बस परिंदा होगा।
नहीं तो किसे वक़्त था पक्षीयों की गुफ्तगू सुनने की,
ताज्जुब तो यह है की बिना जुर्म के गिरफ्तार हुए बैठे है।
अभी आराम से बैठ कर माँ के हाथ का खा लेता हूँ,
वरना ये सुख तो बस बचपन में मिला करता था।
प्रकृति ने भी क्या गजब का रहस्य रचा है,
उसके इस रहस्यमयी में दुनियां का हर इंसान फसा है।
ताज्जुब तो यह है कि बिना जुर्म के गिरफ्तार हुए बैठे है,
अपने ही घरों में लोग कैद सरेआम हुए बैठे है।

😊माधवी~