...

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मामूली सा अस्तित्व
#मे राहगीर नहीं राह हूं,
मुझें कहीं पहुंचना ही नहीं।
मे सफर नहीं सफरी हूं,
मुझें कहीं समाना ही नहीं।
मुझें किसी के नजर मे
ना आने का कोई गम नहीं।
क्यों की हवा के बदौलत जीने वाला
इंसान भी हवा को नहीं देखता।
किसी की साया ना मिलने का गम नहीं मुझे, क्यों की जितनी भी धुप और बरसात हो
पेड़ को कभी छतरी की जरूरत नहीं होता।
मे मिट्टी ने ढोया हुआ गर्व हूं,
सूरज ने देखा हुवा सपना हूं,
नदियों ने जोड़ा हुआ सम्बन्ध हूं,
हवा ने तोड़ा हुआ सरहद हूं,
मे आसमान ने समेटा हुआ अस्तित्व हूं,
हारने वाली मे नहीं...
मे तो हारा हुआ मुझें ही देखने वाली मे हूं।
जितने वाली मे नहीं,
मे तो स्वंय को विजयी देखने वाली मे हूं ।
मे तुम्हारी क्यों होऊ?
मुझें तो खुद का ही नहीं होना हे
मुझें तो उसका होना हे जिस के होने पर फिर किसी और का नहीं होना पड़ता...
© KritiRana🦋

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