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मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते हैं....!
मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते हैं ,
तुम होते तो ऐसा होता, तुम होते तो कैसा होता?

लड़खड़ाते जो ये कदम कभी , तो संभाल लेते तुम ।
हारती जो हिम्मत कभी , तो होंसला बढ़ा देते तुम ।

ख़ामोश होती जो जुबां , तो आंखें पढ़ लेते तुम
ज़िंदगी की उलझनों से , थोड़ा लड़ लेते तुम ।

हमसफ़र न सही , मुसाफ़िर बन लेते तुम ,
सफर तो लंबा है , पर कुछ दूर तो साथ चल लेते तुम ।

तुम होते तो बेशक ये जज़्बा कुछ और ही होता
हमारे फसाने का वो बेशक , एक दौर ही होता।

हारने पे मजबूर करता ये ज़माना , तो जिता देते तुम ।
चुनौतियों का सामना करना, सिखा देते तुम ।

थोड़ी नादानी , थोड़ी समझदारी होती ।
लफ्ज़ तुम्हारे , गज़ल हमारी होती ।

पर सपने और हकीकत में , फर्क बहुत है ।
जिंदगी गुजारने और जीने में , फर्क बहुत है ।

ख्वाबों के शहर में ही सही , आबाद तो है ये कहानी ,
मुकद्दर ऐसा तो नहीं कि दास्तां - ए - इश्क सुनूं तुम्हारी ज़ुबानी ।

इसीलिए.......................................

मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते हैं ।
तुम होते तो ऐसा होता , तुम होते तो कैसा होता....?






© minisoni