...

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रात भर इश्क़ की बात करते रहे
दर्द में हिज्र की रात करते रहे
रात भर इश्क़ की बात करते रहे

सुर्ख़ रुख़सार को देख ऐसा लगे
आँसुओं से निशानात करते रहे

डूब कर इश्क़ में हम यहीं रह गये
इश्क़ को वो मिरी ज़ात करते रहे

आये महफ़िल में थे हम बड़े ज़ौक़ से
बेरूख़ी की वो बरसात करते रहे

बाज़ुओं में दिखा जब रक़ीबों के वो
दर्द से हम मुलाक़ात करते रहे

ये तक़ाज़ा वफ़ा का भला तो नहीं
बेवफ़ाई मिरे साथ करते रहे

यूँ फसाया था उसने मुझे जाल में
तुम तो 'ज़ैग़म' सवालात करते रहे
© words_of_zaiغम