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फ़ौज! ~ ग़ज़ल
फ़ौजियों के तेवरों से पीछे हटेगा बोना इंसान ही,
झूम-झूम कर नाच नाचेंगे हिन्दुस्ताँ में इंसाँ कोई।

इस ज़मीं के खेतों में हुस्न-ए-दिल-आरा आ गई,
वहाँ तूफान का मौसम रहेगा न होगा वीराँ कोई।

फ़ौज की बदौलत मुक्कमल है जश्न-ए-आज़ादी,
नहीं तो हम होते किसी चीनी के ही बागबाँ कोई।

यह हिन्दोस्तां अब नेहरू-बीसवीं सदी का नहीं,
ग़र गड़बड़ कुछ हुई तो न होगा नामोनिशाँ कोई।

वहम मत रखो ये कि हिंदुस्तान हमारा ही होगा,
चेता रहे तुमको कि तुम्हारा न होगी दास्ताँ कोई।

बांकी है जिसकी फ़ितरत वहीं बोने होते जा रहें,
फ़ौज से रूबरू होकर ओर भी कुत्ते परेशाँ कोई।

'रूह' इस ज़माने का ख़लीफ़ा हमारे मुल्क़ में है,
बख़्श देते है वरना हमीं में से होता पासबाँ कोई।

~शिवम राज व्यास "रूह"

#WritcoPoemChallenge #रूह