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पाक़ीज़ा इश्क
जिस्म के देखे हैं सब तलबगार रूह का खरीदार नहीं मिलता,
पाक़ीज़ा इश्क रह गया किस्सों में हकीकत में ऐसा प्यार नहीं मिलता।

प्यार वफ़ा के निभाए जो सदाकत से सारे वादे,
ऐसा तो आजकल कोई इश्क का बीमार नहीं मिलता।

पा लेने का जुनून ही बन गया है आजकल इश्क,
सात जन्मों का साथ निभा दे ऐसा समझदार नहीं मिलता।

बताते हैं सभी ख़ुद को मरीज़- ए- इश्क,
फ़ना हो जाए जो इश्क में ऐसा वफ़ादार नहीं मिलता।

हर रोज़ बदलते हैं आजकल दिलबर यहाँ,
दीदार के चाहत में करें इंतजार ऐसा कोई बेकार नहीं मिलता।

आँखों में ख़्वाब सजा कर किसी के लिए बिता दें ज़िंदगी,
किसी के ज़ख्मों का मरहम बनने को कोई तैयार नहीं मिलता।

गुलाब के फ़ूल से शुरू होकर बंद कमरे तक सीमित हो गई है मोहब्बत,
राधा सा सब्र, मीरा सी दीवानगी का आजकल दीदार नहीं मिलता।