...

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Mingling with Sahir...
तुम्हे भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से
मुझे भी लोग कहते है..... ये जलवे पराये है...
कितना मुझे उनपर एतबार था
अफसोस बेवफा मिरा यार था....
फिर भी आती रही याद उस की
पुकारा जहाँ.. वहाँ खाली दयार था...
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकीन
उसे इक खुबसुरत मोड देकर.... छोडना अच्छा....
भुल गया था... वो फसाना मै
लुट गया था... जो दिवाना मै....
जल गया था...जो इश्क मे
शम्आ तुम थी...वो परवाना मै...
मेरे हमराह भी रुसवाइयाँ है मेरे माजी़ की
तुम्हारे साथ भी गुजरी हुई रातों के साये है...
दिल टूट जाते है चाहने वालों के
बेवजहा इल्जा़म लगाया नही करते...
बेशकिमत होते है मोती अश्क के
किसी के लिए युँ बहाया नही करते...
चलो इक बार फिरसे अजनबी बन जाए
हम दोनो....
तुझे अब भुल जाने को दिल करता है
तिरे यादों से दुर जाने को दिल करता है...
ठहरने की चाहत तो बहुत है फिर भी
यहाँ से गुजर जाने को दिल करता है...
© संदीप देशमुख