...

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स्वार्थ
पता है एक सबक मिला हर सबक के बाद,
अपनों में भी कहीं कोई अपना नहीं होता है,

जंगल की आग को भले दावाग्नि कहते हों,
मगर दांव पर आग तो इंसान लिए फिरता है,

सुनो कब हुआ तंहा दिल मायूस भला,
इसने तो हर हाल में जीना सीखा और सिखाया है,

जिस्म निकला कमजोर सदा हर मोड़ पर,
और कीमत हर दफा रूह ने चुकाया है,

प्यास हसरत इच्छाएं सदा हुई इस पर भारी,
कभी छीना किसी से, कभी किसी पर लुटाया है,

दोष मढ़ा औरों पर देखो खुद को बेदाग दिखा,
ग़लती यहाँ खुद की, कभी स्वीकार न पाया है।
© लहर✍🏻