...

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मज़ारलिक।
लोग मुझसे मिलने आते हैं,पर
ख़बर तेरी निकालने आते हैं।

बातें करके यहाँ वहाँ की यूं ही,
मुझे तेरी ख़ैरियत बताने आते हैं।

जो बनाके रखते हैं फासला तुझसे,
वह मुझसे तेरे हाल पूछने आते हैं।

थक गया हूं वहीं एक किस्सा बताके,
लोग हैं के फ़िर दुबारा सुनने आते हैं।

ज़ख्म छिपा लिया मैंने बड़ी खूबी से,
लोग ढूंढ़ ढूंढ़कर घांव कुरेदने आते हैं।

बागबान महफूज़ रक्खों गुलिस्तां अपना,
कुछ बेवकूफ़ यहाँ फूल भी तोड़ने आते हैं।

मज़ारलिक में क्यूं करते हैं लोग भीड़ इतनी?
चाहनेवालें को आख़िरी अलविदा करने आते हैं।

यह सफ़र तुम्हारे साथ का याद रहेगा उम्रभर,
इसी आख़िरी मंज़िल से हम घर लौट आते हैं।
© वि.र.तारकर.