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रैना बीत रही है
बरसों पहले जब पहली पहली बार कविता लिखना शुरू किया था या यूं कहें कि बस थोड़ी बहुत तुकबंदी सीखी थी, उस खूबसूरत वक्त में टूटे तो नहीं पर शायद बिखरे हुए दिल से सृजित एक मासूम सी रचना...

है आँखों में भारीपन,पर नाम कहाँ नींदों...