...

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रैना बीत रही है
बरसों पहले जब पहली पहली बार कविता लिखना शुरू किया था या यूं कहें कि बस थोड़ी बहुत तुकबंदी सीखी थी, उस खूबसूरत वक्त में टूटे तो नहीं पर शायद बिखरे हुए दिल से सृजित एक मासूम सी रचना...

है आँखों में भारीपन,पर नाम कहाँ नींदों का
आते-जाते ख्वाबों के संग,रैना बीत रही है....

कमी है बस इक तेरी,और कितने अश्क हैं बहते
पर याद है हर इक ताज़ा, और रैना बीत रही है....

बातों में तेरी जो गुज़री,वो रातें ढूँढ रहा हूँ मैं
स्तब्ध पड़ा निर्जीव सा हूँ,और रैना बीत रही है....

बस ख्वाब हैं तेरे साथी, उम्मीद नहीं अब तुझ से
संग पल बिता लूँ इनके,अब रैना बीत रही है....

बस रैना बीत रही है....

© random_kahaniyaan