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हमारी संस्कृति की पहचान - साड़ी
साड़ी केवल एक परिधान ही नहीं होती
वो होती है एक सुन्दर सपना
जिसे छूते वक़्त औरत सोचती है कि
फ़लाँ मौके पर पहनूँगी
और सोचती है .…..
कि जब इसे अपने बदन पर लपेटूंगी तो
प्रियतम के अधरों पर मुस्कान आएगी
उनकी आंखों में शरारत होगी
उनकी नज़रें जायज़ा ले रही होंगी
कि रंग सुन्दर है न
मुझ पर जँच रही है न
सलीके से बांधी है न
यही सब सोच कर औरत के चेहरे पर तृप्ति आ जाती है

इतना ही नहीं
हर साड़ी के साथ कुछ न कुछ यादें लिपटी रहती हैं
इतिहास बन कर.....
और बहुत बार ऐसी साड़ी सौगात बन जाती है
कभी माँ से मिली थी.... आशीर्वाद बन कर
कभी भैया से ...राखी के धागों का नेग बन कर
कभी बेटे से , पहली कमाई का प्रसाद बन कर
तो कभी सहेली से..... विवाह की वर्षगांठ पर दुआएँ बन कर
इसलिए साड़ी केवल एक परिधान नहीं
वो खुद में बहुत सारी स्मृतियों को संजोए हुए
खूबसूरत उपहार होती है

पूनम अग्रवाल
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