🌿🪷हिंदी 🪷🌿
छू श्रवण हृदय को पावन कर दे,
गंगा सी निर्मल बहे सरित।
हारें सारे दर्प, दंभ,
उर सहज भाव से करे विजित।
प्रथम बार मां के मुख से,
सुनी, करी जो उच्चारित।
भाषा जननी तुल्य है होती,
ध्यान रहे, न हो विस्मृत।
न सभा मध्य संकोच करो
न शर्म करो, न हो विचलित।
विज्ञान उद्भूत...
गंगा सी निर्मल बहे सरित।
हारें सारे दर्प, दंभ,
उर सहज भाव से करे विजित।
प्रथम बार मां के मुख से,
सुनी, करी जो उच्चारित।
भाषा जननी तुल्य है होती,
ध्यान रहे, न हो विस्मृत।
न सभा मध्य संकोच करो
न शर्म करो, न हो विचलित।
विज्ञान उद्भूत...