...

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इंसानी व्यवहार
वो ताउम्र दूसरों पर उँगली उठाता रहा
खुद के सारे कर्म सदा ही भुलाता रहा
वो माँगता रहा ईश्वर से दुआएँ खुशियों की
पर औरों की खुशियों में दिल को जलाता रहा

वो चाहता रहा कि यूँ ही किस्मत बदल जाए
मगर खुद को बदलने से हमेशा बचाता रहा
वो गढ़ता रहा झूठी कहानियाँ जुल्मों की
और दूसरों को झूठा वो अक्सर बताता रहा

ये तय था कि एक दिन पोल खुल ही जानी है
मगर फिर भी वो पर्दों में सच को छिपाता रहा
हर एक से सिर्फ मतलब से बात करने वाला
दूसरों को हर वक्त वो मतलबी बताता रहा

ये भी न सोचा कि सब हिसाब इधर ही होना है
वो फिर भी तकलीफों का कर्जा चढ़ाता रहा
एक आवरण चढ़ा लिया उसने खुद के चेहरे पर
और फिर सबको झूठे किस्से वो सुनाता रहा

इंसान भी कितना अजीब है जो अक्सर
अपनी पीड़ा का कारण दूसरों को बताता है
अपने कर्मों को देखे बिना किस्मत को कोसता है
और अक्सर कई गुना दर्द जिंदगी में उठाता है

© Vikas Purohit