...

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#मजबुरी
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
चाहे कह लो इसे मजबूरी है !!

श्रम नहीं मजदूरी है,
तुम जानो क्यों यह जरूरी है ;
नंगे बदन की यह खूबसूरती है,
चाहे पुछ लो ये क्यों जरूरी है ?

अभिमान नहीं आत्मसम्मान है,
फकीरी भी जाज्वल्यमान है ;
पसीने की कमाई में लिज्जत है ,
पुछ लो तुम इसमें क्या इज्जत है ?

भ्रष्टता के इस नंगे नाच में ,
करोड़पतियों की मिलीभगत है;
सोचनै पर कर देती हमें मजबूर है ,
इनकी भी क्या मजबूरी है ?!?

मजबूर नहीं मजबूत बनो :
सीखाते पंथ-धर्म सभी ,अचरज है -
धार्मिकता बढती,श्रद्धा सिमट रही;
इन्सान में हैवानियत बढती जाती !!


© Bharat Tadvi