रातों की फ़ितरत
रातों की फ़ितरत फिर बदल गयी,
चांद की रोशनी फिर अमावस से ढक गयी।
जिस एक के लिए खोला था दिल,
देखो वो तस्वीर भी आज निकल गयी।
समंदर की लहरों में अकेला तहर रहा था,
किनारा देखा तो रुकने का मन हुआ।
गलती ज़ज़्बातों की थीं,
या हालातों का दोष था।
कि हम समुंदर की...
चांद की रोशनी फिर अमावस से ढक गयी।
जिस एक के लिए खोला था दिल,
देखो वो तस्वीर भी आज निकल गयी।
समंदर की लहरों में अकेला तहर रहा था,
किनारा देखा तो रुकने का मन हुआ।
गलती ज़ज़्बातों की थीं,
या हालातों का दोष था।
कि हम समुंदर की...