...

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होंठो पर ख़ामोशी ओढ़े
होंठो पर ख़ामोशी ओढ़े कब तलक,
दर्द - ए - राज को दिल में छुपाओगे!

ज़ाहिर करना भी पड़े दुःखो को तो क्या,
हम पहले जैसे तुम्हारे संग जी पाएँगे!

लोग समझते नहीं है यहाँ ज़ज्बातो को,
पल में खेलकर काँच की तरह तोड़ जायेगे,

सब-ए-वस्ल की तुम बात करते हो क्या
ताउम्र हाथ थाम कर साथ निभाओगे!

हर रोज तुम्हारे चेहरे को देख हाल-ए-दिल,
पढ़ लेती हूँ क्या मुझे दिल से अपनाओगे!

ज़िन्दगी भर साथ निभा नहीं पाता किसी,
का क्या तुम कुछ कदम साथ चल पाओगे!

यहाँ ग़मो का कोई सच्चा साथी नहीं बनता,
खुशियों में बिन बोले ही सरीख़ हो जायेगे!

फरेब से भरे कोहरे का आलम है हर-सू,
सच्चाई रूबरू हुईं तो कैसे मुँह दिखाओगे!
© Paswan@girl