...

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कृष्ण प्रेम ❤️🙏
दिया भी तू ने, लिया भी तू ने,
मेरे पास ना तो पहले कुछ था
ना अब कुछ बचा है फिर यह
नश्वर शरीर को क्यों रोक रखा है...?
तू सब जानता है, तू भी यह मानता है
बिन साथी के जीवन नीरस रहता
तुझे साथी मानकर ख्वाबों में जीती हूं
तुमने मेरे प्रेम को खेल क्यों समझ रखा है...?सबकुछ तो अर्पण कर दिया तुझे
पूरे प्रेम समर्पण के साथ .....
ना पूजने में कमी रखी ना चाहने में
फिर जीवन का मजाक क्यों बना रखा है...?किस से कहूं मैं मन की दुविधा..
यहां हर किसी को अपने आप से मतलब है
मैंने तो कभी मतलब से प्रेम नहीं किया
फिर मन का आंगन सुना क्यों छोड़ रखा है..?
ना तुम बोलते हो ना मौन को समझते हो,
क्या दीवारें, खिड़की,दरवाजे मेरा हिस्सा है
जो इनसे सुख दुख की हर बात करूं मैं
फिर गूंगे बहरे जीवन में क्या रखा है..?
ना तुम जीवन लेते हो ना जरूरत का देते हो,
उम्मीदों को बांधते तोड़ते रहते हो....
प्रेम के दो शब्द भी जीवन का हिस्सा नहीं
तो सांसें चलाने का उपकार क्यों रखा है...?छीन लो सब कान्हा,तन मन टूट चुका है....