असुरक्षित समाज असुरक्षित बेटियां
निभाती है वह फ़र्ज़ बेटी की
दिया करती है वह प्यारअपनों को
खड़े होकर पैरों पर अपने,रचती है वह भविष्य अपना
कंधे पर अपने, लादती है वह जिम्मेदारीयां
कमी लड़के की वह, महसूस नहीं होने देती माता-पिता को अपने
न ही कभी हटती है वह अपने कर्त्तव्यों से पीछे
नीले गगन पर उड़ाने वह भरती है
जिन्दगी जीने पर वह उतर आती है
पर काट दिये जाते है उसके पंख
चिकने चिल्लाने लगती है वह अचानक से
पता दूसरे दिन चलता है
उसकी सांसें रुक चुकी है, उसकी धड़कनें थम चुकी है
किया शिकार उसका पापियों ने मिलकर
मार दिया उसे फिर बेहरमी से
इस कुटिल कार्य को बालात्कार कहा जाता है
इस शब्द को सुनकर पूरा देश कांप सा जाता है
जब छिड़ती है बात इन्साफ की
प्रशासन होता है चुप खड़ा
हाल गज़ब है हमारे देश का
जाती-धर्म से जुड़ी अगर बात हो
तो उतर आते है एक दूसरे की जान लेने पर
जब बात होती लड़की की है
मुजरिम बच ज़रूर जाता है
पापियों के अन्त में कोई क्षति नहीं है
ऐसे दु:शासनों को जीने का कोई हक नहीं है
देश आज़ाद है पर लड़कियां नहीं
कहा उसको जाता है लक्ष्मी
पर वह है सुरक्षित कहां?
ऐसे देश का कोई विकास नहीं
ऐसे देश का कोई भविष्य नहीं।