...

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दास्तान-ए-इश्क़

गुमनामी में जिये जा रही थी वो,
कुछ अधखुले पन्नों में उलझ रही थी वो,

आँखों में बेबसी थी कुछ नमी सी थी,
अधखुली पलकों में सपने बुने जा रही थी वो,

लिख रही थी ज़ज़्बातों को कोरे कागज पर,
नज़्मों में हाल-ए -दिल बयाँ किये जा रही थी वो,

कजरारे नैनों की कोरों से मोती ढलक रहे थे,
विरह वेदना में खुद को भुलाये जा रही थी वो,

वर्षों का इंतज़ार था दिल मिलने को बेकरार था,
सूनी रहगुज़र में पलके बिछाये जा रही थी वो,

कभी तो मुकम्मल होगी आज अधूरी सी है,
इसी आस में हज़ार ज़ख्म खाये जा रही थी वो,

उसकी बेरंग दुनिया मे बहारें आएंगी ज़ुरूर,
इसी उम्मीद में जिये जा रही थी वो.
@..NURI (नैरिती)..💞💞
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