दास्तान-ए-इश्क़
गुमनामी में जिये जा रही थी वो,
कुछ अधखुले पन्नों में उलझ रही थी वो,
आँखों में बेबसी थी कुछ नमी सी थी,
अधखुली पलकों में सपने बुने जा रही थी वो,
लिख रही थी ज़ज़्बातों को कोरे कागज पर,
नज़्मों में हाल-ए -दिल बयाँ किये जा रही थी वो,
कजरारे...