ग़ज़ल : रोको न ख़ुद को
रोको न ख़ुद को यूँ ख़ुदा के लिए
अब मेरे हो जाओ सदा के लिए
काम बिगड़ते मिरे सब बन गए
हाथ उठा किस का दुआ के लिए
रस्म रिवाजों का करुँ क्या मैं अब
रोज़ मैं...
अब मेरे हो जाओ सदा के लिए
काम बिगड़ते मिरे सब बन गए
हाथ उठा किस का दुआ के लिए
रस्म रिवाजों का करुँ क्या मैं अब
रोज़ मैं...