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ग़ज़ल
पहुँच में चाँद तारे आ रहे हैं।
सो हम दिल से उतारे जा रहे हैं।
उन्हें हथियार जो हमने दिये थे,
उन्हीं के हाथ मारे जा रहे हैं।
उधर जाना हमें भाता नहीं हैं,
जिधर सारे के सारे जा रहे हैं।
यहीं हैं डूबने का ज़्यादा खतरा,
ज़रा देखो किनारे आ रहे हैं।
कहीं कोई नहीं सुनता किसी की,
ये हम किसको पुकारे जा रहे हैं।
© इन्दु
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