सुकून
सोचा था तेरे दर पे आएगा कुछ सुकून,
तुमसे भी मुझे लाखों बेचैनियां मिलीं।
जब ज़हर था लहज़ा रहता था कुछ सुकून,
जबसे हैं लफ़्ज़...
तुमसे भी मुझे लाखों बेचैनियां मिलीं।
जब ज़हर था लहज़ा रहता था कुछ सुकून,
जबसे हैं लफ़्ज़...