रोज़ रोज़
रोज़-रोज़ मेरे सामने प्याले उठाते हो,
इतनी बेशर्मी कहां से लाते हो।
कभी अपनी थकान तो कभी चिंताओं का वास्ता देकर मुझे, मेहनतकश का हक है पीना यह जताते हो ।
इतनी बेशर्मी कहां से लाते हो।
अपने काम की महिमामंडन में, तुम मेरी...
इतनी बेशर्मी कहां से लाते हो।
कभी अपनी थकान तो कभी चिंताओं का वास्ता देकर मुझे, मेहनतकश का हक है पीना यह जताते हो ।
इतनी बेशर्मी कहां से लाते हो।
अपने काम की महिमामंडन में, तुम मेरी...