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क्षणिक सफर: एक बर्फ़ का गीत...!!!
#हिमकण

एक बर्फ़ की परत में छिपा स्वप्न सा
आकाश से गिरा एक छोटा सा चमत्कार।
नभ में टिमटिमाता, धरती पर उतरता
निर्मल, कोमल, शीतल, अति उदार।।१।।

तारों के बीच खेलता, हवा संग बहता,
अपने अस्तित्व की धुन में खोया सा।
जैसे कोई गीत अधूरा, अनगिनत राग लिए,
श्वेत, निष्कलंक, पिघलता धीरे-धीरे।।२।।

उसकी यात्रा अदृश्य सी, निशब्द सी,
हर कण में छुपी एक कहानी उसकी।
पहाड़ी की चोटी से मैदानों की ओर,
मंदिर की मूरत से गंगा की ओर।।३।।

हर बार गिरता, कुछ नया रचता है,
लेकिन जानता है, पल भर का अतिथि है।
सूरज की पहली किरण उसे गले लगाती,
उसकी अस्तित्व की सीमा को फिर दर्शाती।।४।।

कभी नदियों में मिलता, कभी जमीं में सोता,
कभी पेड़ों की शाखों में सपनों सा टहलता।
मगर हर मोड़ पर उसे है ज्ञात,
वो है एक क्षण का मेहमान, है उसकी बात।।५।।

क्षणभर का सौंदर्य, अनंत की उड़ान,
फिर भी जीवन की धारा में वो लीन, महान।
हर कण में वो एक छवि छोड़ जाता,
वो बर्फ़ का कण, जो प्रेम से संसार को नहलाता।।६।।

पिघलना ही उसकी नियति, उसका अंत नहीं,
वो एक धुन है, एक लय, जो थमती नहीं।
किसी के आँगन में गिरा हो या पर्वत के शिखर पर,
हर जगह उसकी यात्रा होती मधुर, सुंदर।।७।।

यही है बर्फ़ के कण का सजीव साक्षात्कार,
उसके अस्तित्व में छिपा है जीवन का सार।
क्षणिक है, पर शाश्वत भी,
एक बर्फ़ का कण, जो है सृष्टि का गीत।।८।।
© 2005 self created by Rajeev Sharma